श्वेतार्क गणपति

*श्वेर्ताक गणपति पूजा विधान* श्वेतार्क जिसे ग्रामीण भाषा में आक अथवा मदार भी कहा जाता है । रंग भेद से यह दो प्रकार का होता है, एक सफेद तथा दूसरा लाल, सफेद फूल वाले मदार को ही श्वेतार्क कहा जाता है। 
तंत्र शास्त्र में सफेद फूल वाले मदार को दुर्लभ एवं चमत्कारिक बताया गया है। इसके फूलों को ध्यान से देखने पर गणपति का स्पष्ट स्वरूप दिखाई देता है। इसके पुष्पों को भगवान शंकर पर चढ़ाया जाता है।
कहा जाता है कि 25 वर्ष पुराने श्वेतार्क के पौधे के जड़ में भगवान गणपति की मूर्ति का निमार्ण प्राकृतिक रूप से हो जाता है जिसकी साईज अंगुष्ठ प्रमाण होती हैं यानि हथेली से अंगुठे तक की साईज के होते हैं।
ऐसे दुलर्भ श्वेतार्क गणपति की मूर्ति को रवि पुष्य नक्षत्र में विधिवत प्राप्त कर घर में स्थापित कर लिया जाय तो सम्पूर्ण धन, एश्वर्य तथा सुख-सम्पदा की कोई कमी नहीं रहती।
श्वेतार्क के जड़ को यदि रवि पुष्य नक्षत्र के दिन विधि पूवर्क आमंत्रित कर उखाड़ लाये तो यह जड़ी अनेकों प्रकार के चमत्कारिक प्रभाव दिखाने में समर्थ होती है।
श्वेतार्क के तांत्रिक प्रयोग-
रवि पुष्य नक्षत्र में विधि पूर्वक (आमंत्रित कर) लाये गये श्वेतार्क के जड़ को पहले पानी से फिर दूध तथा गंगा जल से धोकर पवित्र कर सुखा कर लाल कपड़े में लपेटकर रखें।फिर किसी कारिगर से उसके जड़ की गणेश प्रतिमा बनवाकर प्राण प्रतिष्ठित कराकर स्थापित किया जाता हैं ।
नोट-श्वेतार्क गणपति के पूजा विधान के जानकार गुरूजन से मंत्रो से अभिमंत्रित कर पूजा करवानी चाहिये क्योकिं श्वेतार्क गणपति का प्रयोग तांत्रिक कार्य सिध्दि मे किया जाता हैं और इनकी पूजा के सारे मंत्र तांत्रिक व अलग हैं।