वैदिक वास्तु शास्त्र का प्रारंभ ईसा से हजारों साल पहले हुआ था .
देवताओं के वास्तुकार आचार्य विश्वकर्मा ने स्वर्ग लोक में भवन निर्माण किया इसका उल्लेख 'अर्थववेद' मे है!
दक्षिण भारत के 'समरांगण सूत्रधार ' नामक ग्रंथ में आचार्य विश्वकर्मा के कर्मठ वास्तु विद् होने की चर्चा है!
आचार्य विश्वकर्मा द्वारा द्वारका निर्माण सुन्दर उदाहरण है,आचार्य विश्वकर्मा ने वास्तु शास्त्र के सिद्धांत बनाये
इसीलिए भवन निर्माण से जुडे लोग उनको पूजते हैं |
वास्तु शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द " वस् " धातु से हुई थी जिसका अर्थ होता है
वास यानी जगह या आवास ।।
जिस प्रकार मनुष्य का शरीर पंचमहाभूतो (पृथ्वी,जल,आकाश,जल व वायु) से बना हैं
उसी प्रकार मकान जिस पृथ्वी पर बना हो उस पर जल की व्यवस्था,वायु व प्रकाश के लिये
दिशाज्ञान और अग्नि (सौर ऊर्जा) देने वाले तत्वों का ध्यान वास्तु में रखा जाता है ।
वास्तु शुद्धि का ध्यान रखते हुए नींव खोदते समय,चोंखट चढाते समय,छत भरते समय
एंव गृहप्रवेश के समय वास्तुदेव पूजा एंव शांति का विधान हैं ।।।
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