२१ अप्रैल,मंगलवार,अक्षय़ तृतीया​

 अक्षय तृतीया का सर्वसिद्ध मुहूर्त के रूप में भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन बिना कोई​ पंचाग  देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीददारी या घर, भूखंड, वाहन आदि की खरीददारी से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं। नवीन वस्त्र, आभूषण आदि धारण करने और नई संस्था, समाज आदि की स्थापना या उदघाटन का कार्य श्रेष्ठ माना जाता है। 
'अक्षय' का अर्थ है. "जो कभी भी ख़त्म नहीं होता" अर्थात 'जिसका कभी अन्त नहीं होता'। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार यह दिन सौभाग्य और सफलता का सूचक है। इस दिन को 'सर्वसिद्धि मुहूर्त दिन' भी कहते है, क्योंकि इस दिन शुभ काम के लिये पंचांग देखने की ज़रूरत नहीं होती।
तृतीया तिथि माँ गौरी की तिथि है, जो बल-बुद्धि वर्धक मानी गई हैं। अत: सुखद गृहस्थ की कामना से जो भी विवाहित स्त्री-पुरुष इस दिन माँ गौरी व सम्पूर्ण शिव परिवार की पूजा करते हैं, उनके सौभाग्य में वृद्धि होती है। यदि अविवाहित स्त्री-पुरुष इस दिन श्रद्धा विश्वास से माँ गौरी सहित अनंत प्रभु शिव को परिवार सहित शास्त्रीय विधि से पूजते हैं तो उन्हें सफल व सुखद वैवाहिक सूत्र में अविलम्ब व निर्बाध रूप से जुड़ने का पवित्र अवसर अति शीघ्र मिलता है।'अक्षय तृतीया' के दिन ख़रीदे गये वेशक़ीमती आभूषण एवं सामान शाश्वत समृद्धि के प्रतीक हैं। इस दिन ख़रीदा व धारण किया गया सोना अखण्ड सौभाग्य का प्रतीक माना गया है। इस दिन शुरू किये गए किसी भी नये काम या किसी भी काम में लगायी गई पूँजी में सदा सफलता मिलती है और वह फलता-फूलता है। यह माना जाता है कि इस दिन ख़रीदा गया सोना कभी समाप्त नहीं होता, क्योंकि भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मीस्वयं उसकी रक्षा करते हैं।