होलाष्टक 17 मार्च से 24 मार्च

 होलाष्टक आरंभ-17 मार्च सुबह 6:37 बजे से 
होलाष्टक समाप्त- 24 मार्च रात्री  तक 
होलाष्टक से तात्पर्य होली के 8 दिन पूर्व से है। अर्थात धुलंडी से आठ दिन पहले होलाष्टक की शुरुआत हो जाती है। इन दिनों शुभ कार्य करने की मनाही होती है। होलाष्टक शब्द होली और अष्टक दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसका भावार्थ होता है होली के आठ दिन। होलाष्टक फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी से शुरू होकर फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तक रहता है। अष्टमी तिथि से शुरू होने कारण भी इसे होलाष्टक कहा जाता है।धार्मिक मान्यता के अनुसार इन आठ दिनों में कोई भी16  मांगलिक कार्यक्रम जैसे शादी, ब्याह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि वर्जित माने जाते हैं।
होलाष्टक के दौरान अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहू उग्र स्वभाव में रहते हैं। इन ग्रहों के उग्र होने के कारण मनुष्य के निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाती है।
होलाष्टक तपस्या के दिन होते हैं। ये आठ दिन दान पुण्य के लिए विशेष होते हैं। इसलिए इस दौरान व्यक्ति को अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार कपड़े, अनाज, धन और अन्य आवश्यक वस्तुओं का दान करना चाहिए। इससे विशेष पुण्य फल मिलता है। 
होलाष्‍टक में रोजाना पूजापाठ के वक्‍त भगवान राम और कृष्‍ण को अबीर और गुलाल लगाना चाहिए और पूजापाठ करना चाहिए और श्रीसूक्‍त का पाठ करना चाहिए।
होलाष्‍टक में रोजाना भगवान शिव की पूजा करें और महामृत्युंजय मंत्र का जप करने हर प्रकार की विपत्ति में कमी है।